Contract Workers Pension, हाई कोर्ट का बड़ा निर्णय अस्थाई कर्मीयों को भी दी जाए पेंशन

Contract Workers Pension दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अस्थायी कर्मचारियों को पेंशन देने का अधिकार सुनिश्चित किया है, जिससे उन्हें इस लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पाँच पूर्व कर्मचारियों के पेंशन अधिकार को मान्यता दी है। अपने आदेश में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अस्थायी रूप से कार्यरत रहते हुए दशकों की सेवा देने के बावजूद उन्हें पेंशन लाभ से वंचित करना अनुचित है।

Contract Workers Pension
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उच्च न्यायालय ने अस्थायी कर्मचारियों को पेंशन प्रदान करने के संबंध में यह अहम फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता बिरमा देवी, धन्नो, नारायणी देवी, सिलमान और शेर बहादुर राम वर्ष 1980 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) में दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्यरत थे। चूंकि वे संविदा आधार पर नियुक्त थे, इसलिए उन्हें पेंशन के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए उनके पेंशन लाभ को बहाल करने का आदेश दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पाँच पूर्व कर्मचारियों के पेंशन अधिकार को सुरक्षित रखा। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि अस्थायी स्थिति में उनकी दशकों की सेवा को पेंशन से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। याचिकाकर्ता 20 वर्षों से अधिक समय तक विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (बेलदार-दिहाड़ी मजदूर) के रूप में कार्यरत थे। अदालत ने कर्मचारियों को अस्थायी रोजगार में बनाए रखने की दीर्घकालिक प्रथा की भी आलोचना की।

मामला विस्तार से

याचिकाकर्ता बिरमा देवी, धन्नो, नारायणी देवी, सिलमान और शेर बहादुर राम वर्ष 1980 से एएसआई के तहत दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्यरत थे। संविदा आधार पर जुड़े होने के कारण उन्हें पेंशन का अधिकारी नहीं माना गया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए पेंशन देने का निर्देश दिया।

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Contract Workers Pension Update

न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल की खंडपीठ ने फरवरी के पहले सप्ताह में दिए अपने आदेश में याचिकाकर्ताओं को पेंशन से वंचित करने वाले फैसले को रद्द कर दिया। सभी याचिकाकर्ताओं ने 2010 से 2014 के बीच सेवानिवृत्त होने से पहले दो दशकों से अधिक समय तक सेवा दी थी। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि वे नियमित कर्मचारियों के समान पेंशन लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं। अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे आठ सप्ताह के भीतर उनका बकाया जारी करें।

किसी भी प्रकार की देरी की स्थिति में, न्यायालय ने उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि से भुगतान किए जाने तक 12% वार्षिक ब्याज दर लागू करने का निर्णय लिया। अदालत ने यह भी कहा कि अस्थायी अनुबंध मूल रूप से सीमित अवधि या मौसमी आवश्यकताओं के लिए बनाए गए थे, लेकिन अब इनका दुरुपयोग करके कर्मचारियों को उनके उचित लाभों से वंचित किया जा रहा है।

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हाई कोर्ट की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को पेंशन से वंचित करने वाले आदेश को पूरी तरह निरस्त कर दिया है। इनमें से सभी कर्मचारी 2010 से 2014 के बीच सेवानिवृत्त हुए थे और इससे पहले दो दशकों से अधिक समय तक संविदा आधार पर कार्यरत थे। अदालत ने यह स्वीकार किया कि संविदा कर्मचारी भी अब नियमित कर्मचारियों की तरह पेंशन पाने के अधिकारी हैं।

संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे आठ सप्ताह के भीतर उनका बकाया भुगतान सुनिश्चित करें। यदि इसमें कोई देरी होती है, तो न्यायालय ने उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि से भुगतान होने तक 12% वार्षिक ब्याज लगाने का आदेश दिया है। इसके अलावा, अदालत ने स्पष्ट किया कि अस्थायी अनुबंधों की मूल अवधारणा केवल अल्पकालिक या मौसमी आवश्यकताओं के लिए थी, लेकिन अब इनका दुरुपयोग कर कर्मचारियों को उनके उचित लाभों से वंचित किया जा रहा है, जो पूरी तरह अनुचित है।

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दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो हजारों अस्थायी रूप से सेवा कर रहे कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। बड़ी संख्या में अस्थायी कर्मचारी दशकों से लगातार कार्यरत हैं, लेकिन उन्हें नियमित कर्मचारियों की तरह कोई लाभ नहीं मिल रहा था, न ही उन्हें पेंशन के लिए योग्य माना जा रहा था। याचिकाकर्ताओं ने 20 वर्षों से अधिक समय तक विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में अपनी सेवाएँ दी थीं।

हाई कोर्ट ने कर्मचारियों को लंबे समय तक अस्थायी रोजगार की स्थिति में बनाए रखने की प्रथा की आलोचना की है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि याचिकाकर्ता 1980 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत संविदा कर्मचारियों के रूप में कार्यरत थे, लेकिन संविदा आधार पर नियुक्ति होने के कारण उन्हें पेंशन का पात्र नहीं माना गया। हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए पेंशन प्रदान करने का निर्देश दिया है। संविदा कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने से संबंधित यह ऐतिहासिक आदेश दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपाल शामिल थे, के द्वारा जारी किया गया है।

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